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कामकाजी व्यक्ति और भावनाओं का संघर्ष

कार्यस्थलों पर कर्मचारियों में भावनात्मक गिरावट कोई नई बात नहीं है,  लेकिन इसे समझना सचमुच एक जटिल प्रक्रिया होती है। अक्सर स्थिति बिगड़ जाने पर ही इसका पता चलता है। दरअसल इस समस्या के कई कारण हो सकते हैं,  जिनमें से कुछ सतही तौर पर दिख जाते हैं तो अन्य का गहन मनोविश्लेषण के बाद ही पता चलता है। कार्यस्थलों पर कर्मचारियों में भावनात्मक समस्याओं पर विशेष रिपोर्टतनाव का सीधा संबंध हमारी भावनाओं से जुड़ा होता है और इसके कारण अधिकतर बाहरी होते हैं,  इसलिए निजी जीवन की तरह कार्यस्थल पर भी तनाव के कई रूप और कारण हो सकते हैं। कार्यस्थल पर भावनात्मक गिरावट या ‘इमोशनल मैल्टडाउन’  कई कारणों से सामने आता है। कई स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसे ‘साइकॉसिस’ के दायरे में भी रखते हैं। साइकॉसिस यानी एक ऐसी स्थिति,  जिसकी चपेट में आकर व्यक्ति अपने आसपास की सच्चाई को समझने में असमर्थ रहता है और उसके अनुसार काम नहीं कर पाता।
 अक्सर हमने सिलेब्रिटीज से जुड़े ऐसे किस्से सुने हैं कि वह किसी सार्वजनिक स्थान पर दूसरों के साथ मारपीट या गालीगलौज करते नजर आए। ऐसे मामले अक्सर साइकॉसिस की जद में आते हैं। वह यथार्थ से दूर, अपनी ही दुनिया में खोए रहते हैं और उनके दिमागी फितूर के हिसाब से ही उनके हावभाव संचालित होते हैं। सिलेब्रिटीज के मामले में अक्सर उनका असंतुलन सार्वजनिक तौर पर इसलिए भी देखने को मिलता है, क्योंकि वह अक्सर बहिर्मुखी जीवन जीते हैं। जनता के सामने प्रदर्शन में उन्हें झिझक नहीं होती, परंतु अन्य लोग अपने अंदर ही संघर्ष करते हैं और उनकी समस्याओं का पता लंबे समय के बाद चलता है।

दरअसल हरेक व्यक्ति तनाव का अलग-अलग तरह से सामना करता है,  इसलिए किसी भी व्यक्ति के व्यवहार में तनाव के कारणों की पहचान कर पाना भी मुश्किल होता है। हालांकि लोग खुद अपने भीतर आ रहे परिवर्तनों को पहचानते हैं। मसलन, नींद न आना। परंतु उन्हें इसका मतलब पता नहीं चलता, इसलिए वे अक्सर अपनी समस्याओं के उपचार के लिए खुद आगे नहीं आते। लिहाजा तनाव पर तनाव की परतें चढ़ती जाती हैं और वे अपने ही अंदर धंसते जाते हैं। नतीजा अपने सहकर्मियों और परिवारजनों के प्रति उनके व्यवहार में स्नेह और सहयोग का भाव नहीं रहता। वे सामाजिकता से दूर अकेलेपन के शिकार हो जाते हैं।

किसी भी कामकाजी व्यक्ति के साथ ऐसे हालात अधिकांशत: तब बनते हैं,  जब वह अपने काम से जुड़ी किसी बुरी खबर के लिए मानसिक तौर पर तैयार नहीं होता। इस श्रेणी में अधीनस्थ ही नहीं, मैनेजर भी आ सकते हैं। आमतौर पर एक मैनेजर से उम्मीद की जाती है कि वह अपने अधीनस्थों के प्रति जिम्मेदार व्यवहार अपनाए, लेकिन ऐसा कोई मैनेजर जो कम प्रतिभाशाली है,  अपने किसी सहकर्मी की किसी बात से आहत भी हो सकता है। यह भी आवेगपूर्ण व्यवहार का एक बड़ा कारण हो सकता है। इसलिए प्रोफेशनल कॉर्पोरेट माहौल में विशेषज्ञों द्वारा अपनी भावनाओं पर काबू रख कर दूसरों की बात समझने पर जोर दिया जाता है। इसकी कंपनी और कर्मचारियों दोनों से उम्मीद की जाती है। तो कैसे पहचानें इन कारणों को और इनसे कैसे उबरें!



कैसे उबरें आत्मसंघर्ष की स्थिति से
यदि किसी में इमोशनल मैल्टडाउन के शुरुआती या गहरे लक्षण दिख रहे हैं तो कुछ रचनात्मक तरीके व्यक्ति की मदद कर सकते हैं। ये हैं..

लेखन
अपने बुरे और नकारात्मक अनुभव के बारे में लिखने को सेल्फ-हेल्प थेरेपी के तौर पर देखा जाता है। शोध बताते हैं कि लेखन आपके इम्यून सिस्टम और मूड में सुधार करता है। इससे रक्तचाप, दर्द और अन्य तकलीफों में आराम मिलता है। इसके लिए जरूरी है कि प्रतिदिन पंद्रह मिनट के लिए अपनी डायरी लिखने का अभ्यास करें। अपनी सभी दिक्कतों का खुलासा अपनी डायरी के पन्नों में करें।

ब्रेक लें
कार्यस्थल पर इमोशनल मैल्टडाउन से उबरने के लिए पैदल चलना या मेडिटेशन बहुत कारगर तरीके हैं। इनमें भी पैदल चलना विशेष तौर पर लाभदायक होता है,  जिस दौरान विचारों को सहेजने में मदद मिलती है। ध्यान दें कि यह समय सकारात्मकता से भरपूर हो।

व्यायाम
अपने मूड को ठीक करने का एक बेहद कारगर तरीका है लगातार व्यायाम करना। तेज चलना या अपनी सुविधानुसार अन्य किसी किस्म का व्यायाम कारगर रहता है। केवल दस मिनट के व्यायाम से ही आपको बेहतर महसूस होने लगेगा।

मित्र से बात

अपने किसी भरोसेमंद मित्र से भी बात कर सकते हैं। इससे आपको समस्या को नए सिरे से समझने का नजरिया मिलेगा या उसका कोई सिरा हाथ आएगा, जिसके आधार पर आप उसे सुलझाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। याद रखें मित्र से बात केवल बातचीत तक ही सीमित रहनी चाहिए, उससे मदद की गुहार न लगाएं।

आत्म-विश्लेषण
प्रतिदिन आधा घंटा एकांत में बिताएं। समस्या क्यों हैं, इस बारे में खुद से सवाल करें। सवाल दोहराते रहें और एक समय बाद आप उसकी जड़ में जा पहुंचेंगे। किसी भरोसेमंद मित्र से भी इस बारे में बात कर सकते हैं। यह पांच उपाय आपको व्यवहार में कुछ लचीलापन अपनाने को प्रेरित करेंगे, जो हमें सीमित दायरे से दूर एक व्यापक दृष्टिकोण देता है।




कुछ कारण,  जिनसे पहचानें समस्या को

एकाग्रता की कमी

प्रत्येक व्यक्ति के साथ ऐसा समय कभी न कभी जरूर आता है, जब उसे अपनी एकाग्रता में कमी दिखती है। यदि लगातार कुछ दिनों/सप्ताह तक ऐसा महसूस हो तो समझिए कि आपकी मानसिक क्षमता और हालत कुछ गड़बड़ा रही है।

अव्यवस्थता
एक समय आपका व्यवस्थित लगने वाला डेस्क यदि अब लगातार बेतरतीब नजर आता है तो यह भी एक संकेत हो सकता है भावनात्मक गिरावट का। मनोवैज्ञानिक सत्य है कि किसी भी व्यक्ति की जीवनशैली उसके आचार-व्यवहार और रख-रखाव से स्पष्ट होती है।

पहनावा
मनोवैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि यदि कोई अपने पहनावे को लेकर लापरवाह दिखे तो हो सकता है कि वह भी मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रहा हो। दफ्तर में मैले कपड़े पहने दिखने वाले व्यक्ति आलस ही नहीं, बल्कि किसी और समस्या के शिकार भी हो सकते हैं।

दबाव
यूं तो कामकाज में व्यस्त कोई स्वस्थ व्यक्ति भी तनाव का शिकार हो सकता है,  परंतु यदि आपका शरीर अति के संकेत दे रहा हो तो चेत जाएं। यह स्थिति तब होती है,  जब उस व्यक्ति को महसूस हो कि उसके भीतर तनाव पूरा भर चुका है और वह फट पड़ने को है।

नकारात्मकता
यदि कोई व्यक्ति औपचारिक मीटिंग्स में नकारात्मक विचार रखता दिखे तो समझ लेना चाहिए कि उसे मदद की जरूरत है। दरअसल औपचारिक बैठकों में अपने विचारों को व्यक्त करने के प्रति हमेशा अतिरिक्त सावधानी बरतनी होती है। ऐसी मानसिक हालत वाले व्यक्ति अपने विचारों को छुपा नहीं पाते।

हिंसा
कार्यस्थल पर भावनात्मक तौर पर अलग-थलग पड़ा व्यक्ति अपने मन में विपरीत परिस्थितियों के लिए हिंसात्मक फंतासियां भी बनाता है। इससे पहले कि उसकी कोई फंतासी सचमुच कार्यरूप ले,  उसे मदद मिलनी चाहिए।

अकेलापन
यह सबसे जरूरी संकेतों में से है। तनावग्रस्त व्यक्ति धीरे-धीरे पूरी तरह अकेलेपन की अवस्था में जा पहुंचता है। यह विशेष तौर पर खतरनाक स्थिति होती है।

भोजन और नशा
बिगड़ती मानसिक दशा में खान-पान के तरीके और वजन पर भी असर पड़ता है। खुराक में कमी या वृद्धि बताती है कि व्यक्ति अपने मनोभावों से जूझ रहा है। इसी तरह अपने अवसाद से लड़ने के लिए बड़ी संख्या में लोग नशे का भी सहारा लेते हैं। नशा अवसाद को और बिगाड़ता है।

जान का खतरा
आत्महत्या का प्रयास बिगड़ी मानसिक दशा की पहचान होता है। अवसादग्रस्त व्यक्ति कई बार अपनी सुरक्षा को लेकर भी शंकित रहते हैं। ऐसे में भी वह खतरनाक कदम उठा लेते हैं। - See more at: http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/jobscarrier/article1-Stress-relationship-emotion-personal-life-67-71-470835.html#sthash.CqlKkCR1.dpuf
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